Monday, August 9, 2010

बदलाव

कहते हैं की जब इंसान किसी तंत्र से उब जाता है तो उसको उसे बदलने की ज़रूरत महसूस होने लगती है | पर क्या समस्या का समाधान तंत्र को बदलने से हो जायेगा ? नहीं क्योंकि केवल तंत्र को बदलने से काम नहीं चलने वाला | अगर सच में समस्या का समाधान चाहिए तो पहले हर एक इंसान को अपने अंदर झाँक कर देखना चाहिए की क्या सच में उसको तंत्र को बदलने की आवश्यकता है या सबसे पहले स्वयं को बदलने की ज़रूरत ? सही मायनों में देखा जाये तो किसी भी व्यक्ति विशेष को सबसे पहले स्वयं को बदलना चाहिए तभी वो किसी और से बदलाव की उम्मीद रखने के काबिल है | कहने का मतलब ये है की हाल के दिनों में बिहार विधान सभा में जो भी घटनाएं हुई , उसके बाद ये आवाज़ बुलंद होने लगी की हमारे संविधान को पुनर्लेखन की आवश्यकता है |जी नहीं मैं इससे बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ | ज़रा गौर से सोचे तो ये पता चलेगा की आज से ६० साल पहले जब संविधान का निर्माण किया गया था तब किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी की आगे चलकर स्थिति इतनी भयावह हो जायेगी | असल में हमारे संविधान में पुनर्लेखन की आवश्यकता नहीं है | आवश्यकता है हमे हमारी सोच को बदलने की | क्योंकि कही न कहीं से इस स्थिति के लिए खुद हम ही जिम्मेदार हैं | हम लोग ही हमारे जन प्रतिनिधियों कका चुनाव करके उन्हें अधिकार प्रदान करते हैं हमारे भविष्य के निर्माण की | तो इसके लिए स्वयं हम ही ज़िम्मेदार हैं | पहले अपने आप को बदलिए सबकुछ अपने आप परिवर्तित हो जायेगा | समस्या का समाधान ये नहीं की हम समस्या से मुह मोड ले \ समाधान ये है की उस समस्या के कारणों पर विचार करके उसका समाधान निकालें |

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