Sunday, August 15, 2010

अर्थ

टूटी झोंपड़ी गरीब की बसाता नहीं कोई
    वीरान सी इन बस्तियों को बसाता नहीं कोई
उजड़े हुए चमन लगता नहीं कोई
    पत्थर बरस रहे हैं गरीबों के सरों पर
क्या ज़ुल्म हो गया है बताता नहीं कोई
      नारा तो लगाते हैं की सब की जागते रहो
बातों की मीठी नींद गंवाता नहीं कोई
       करते तो हैं सभी संघर्ष की बातें
शंखनाद इस पहल का बजाता नहीं कोई
        बनने को बन जाते हैं सभी धर्मं के रहनुमा 
धर्म इंसानियत का निभाता नहीं कोई 
        भाई ही यहाँ दुश्मन बना है भाई का 
फिर भी आज राम को क्यों पूजता है कोई 
        कहने को तो हम सभी एक हैं मगर 
आँगन में दीवार क्यों खींचता है कोई 
        सब कहते हैं की मैं हिन्दुस्तानी हूँ मगर 
फ़र्ज़ वतनपरस्ती का निभाता नहीं कोई 
         मेरा राज्य - मेरा राज्य कर रहे सभी
मेरा मुल्क मेरा वतन कहता नहीं कोई
         मैं आसामी,मैं मराठी तो कह रहे सभी
मैं हिन्दुस्तानी हूँ गर्व से कहता नहीं कोई,कहता नहीं कोई,कहता नहीं कोई |

यही दशा है हमारे भारत की | क्या इसी भारत की तस्वीर हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने |जिन्होंने अपने प्राण तक हँसते हँसते इसी भारत के लिए न्योछावर कर दिए थे | ज़रा सोचिये और सोच कर बताईये|

1 comment:

  1. सीधी और सच्ची बात - शुभकामनाएं

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