टूटी झोंपड़ी गरीब की बसाता नहीं कोई
वीरान सी इन बस्तियों को बसाता नहीं कोई
उजड़े हुए चमन लगता नहीं कोई
पत्थर बरस रहे हैं गरीबों के सरों पर
क्या ज़ुल्म हो गया है बताता नहीं कोई
नारा तो लगाते हैं की सब की जागते रहो
बातों की मीठी नींद गंवाता नहीं कोई
करते तो हैं सभी संघर्ष की बातें
शंखनाद इस पहल का बजाता नहीं कोई
बनने को बन जाते हैं सभी धर्मं के रहनुमा
धर्म इंसानियत का निभाता नहीं कोई
भाई ही यहाँ दुश्मन बना है भाई का
फिर भी आज राम को क्यों पूजता है कोई
कहने को तो हम सभी एक हैं मगर
आँगन में दीवार क्यों खींचता है कोई
सब कहते हैं की मैं हिन्दुस्तानी हूँ मगर
फ़र्ज़ वतनपरस्ती का निभाता नहीं कोई
मेरा राज्य - मेरा राज्य कर रहे सभी
मेरा मुल्क मेरा वतन कहता नहीं कोई
मैं आसामी,मैं मराठी तो कह रहे सभी
मैं हिन्दुस्तानी हूँ गर्व से कहता नहीं कोई,कहता नहीं कोई,कहता नहीं कोई |
यही दशा है हमारे भारत की | क्या इसी भारत की तस्वीर हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने |जिन्होंने अपने प्राण तक हँसते हँसते इसी भारत के लिए न्योछावर कर दिए थे | ज़रा सोचिये और सोच कर बताईये|
सीधी और सच्ची बात - शुभकामनाएं
ReplyDelete