कहानी है उनके नाम जो अपने बुज़ुर्ग माँ बाप को या तो बोझ समझते हैं, या फिर ओल्ड फैशन कपड़े,जिनकी एक समय के बाद मार्केट डिमांड समाप्त हो जाती है,ये उनकी कहानी है जो पेड़ तो लगा देते हैं, इस आस में की समय आने पर वह फल देगा, और अगर फल न भी मिले तो कम से कम छाया तो ज़रूर मिलेगी,पर अंत में क्या होता है ? पूरी ज़िंदगी जो अपने शारीर को जला देने वाली धूप, जमा देने वाली सर्द हवाओं एवं मज़बूत से मज़बूत इमारतों को भी गिराने में सक्षम पानी एवं तेज़ आँधी का सामना कर अपने बुढ़ापे की कथित लाठी या उस छायादार वृक्ष के कोमल अंकुर की रक्षा करते हैं, वही वृक्ष बनने के बाद अनजान पक्षियों को तो आसरा दे देता है परन्तु उसे जीवन देने वाले माली को ही पहचानने से इनकार कर देता है, तब उस माली पर क्या गुज़रती है, इसकी कल्पना मात्र से ही रोम-रोम सिहर जाता है,नेत्रों से बरबस आंसू छलक आते हैं,उस असहनीय पीड़ा को मैं तो क्या स्वयं भगवान भी अभिव्यक्त नहीं कर सकते,ये पीड़ा तो वही समझ सकता,है,जिनपर ये गुज़रती है|पता नहीं हमारे भारत की युवा पीढ़ी को ये क्या हो गया है? मुझे तो ये कहते हुए अनायास ही विचार आता है की, क्या ये वही भारत है? जहाँ श्रवण कुमार जैसे पुत्र भी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन माँ बाप के चरणों में अर्पण कर दिया था बिना किसी स्वार्थ के, यहाँ तक की उनके लिए अपने प्राणों को हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया था|धन्य था वो सपूत जिसके मुख से मरते समय भी माता पिता की ही व्यग्र चिंता निकल रही थी|इसी भारत में श्री रामचंद्र जी जैसे पुत्र भी थे जिन्होंने अपने पिता के वचन मात्र की मर्यादा रखने के लिए सर्वस्व त्याग कर, सभी सुखो का त्याग करके १४ वर्ष का वनवास ग्र्रहण किया|परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यह एक कहानी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया है,जिसे सुनने में तो बहुत आनंद आता है, पर उसको ग्रहण करने केनाम पर हिम्मत जवाब दे जाती है|मैं कोई सर्वज्ञ या सर्वज्ञाता नहीं हूँ,हाँ पर एक जिम्मेदार भारतीय हूँ, जो अपनी संस्कृति एवं सभ्यता से खिलवाड़ होते नहीं देख सकता
वेदों पुराणों एवं सभी धर्म ग्रंथो में, सभी धर्मो में अगर इश्वर का मूर्त रूप देखा गया है तो वह माता-पिता के रूप में ही देखा गया है|सभी धर्म यही कहते हैं, की साक्षात् भगवान के रूप अगर धरती पर हैं तो वो माता-पिता ही हैं|भगवान को किसी ने नहीं देखा पर सभी उनको पूजते हैं
पर जो सच में साक्षात् भगवान का रूप होते हैं,यानी माता-पिता उनकी पूजा से लोग विमुख होकर हम समझते हैं की हमने भगवान की पूजा कर ली|
एक बार जब भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान थे, तो उन्होंने अपने दोनों बेटों गणेश और कार्तिकेय को तीनो लोको का भ्रमण करने के लिए कहा, कार्तिकेय तो फ़ौरन अपने मोर पर विराजमान होकर चले गए, परन्तु गणेश जी अपने माता-पिता के ही तीन चक्कर काट कर बोले की आप दोनों ही तो मेरे तीनो लोक होइससे पता चलता है की माता-पिता ही हमारे लिए सब कुछ हैं| धन्य है वो संतान जो माता-पिता के चरणों में स्वर्ग देखते हैं
लेकिन अधिकांशतः,संताने उन्हें बोझ समझते हैं|समस्या केवल कुछ लोगों की नहीं है,समस्या काफी बड़ी है|उनके जीवन में वृद्ध माता-पिता किसी अवांछनीय खर-पतवार की तरह हैं, जिन्हें वह किसी भी कीमत पर अपने तथाकथित मोडर्न जीवन में जगह नहीं देना चाहते|सच्चाई तो बिलकुल विपरीत है, जो सच में है उसका कोई मोल नहीं है,और जो सच में नहीं है उसके पीछे सभी पागल हैं|माता पिता,तो इश्वर के वो प्रत्यक्ष स्वरुप हैं, जिसमे सारा ब्रह्माण्ड निहित है|दरकार है तो बस उचित नज़र से देखने की क्यों भौतिकतावाद के पीछे पागलों की तरह मारे फिरते हो, जो सत्य है उसी की पूजा करो|
जिस माता-पिता ने जीवन दिया, बीज से वृक्ष बनाया उसी को तिरस्कृत करके हम कौन सी बहादुरी कर रहे हैं? अभी भी समय है,जिन्होंने अपने जीवन की परवाह न करते हुए,खुद आधा परत खाकर, आधे नंगे रहकर भी तुम्हारी हर इच्छा को पूरा किया आज उसी से पूछते हो की कि आपने हमारे लिए किया ही क्या हैशर्म करो माता-पिता तो उस कल्पवृक्ष कि तरह हैं, जिन्होंने कभी देने के अलावा कुछ नहीं किया अगर सच में इश्वर के प्रति श्रद्धा है,तो इश्वर क माता-पिता में देखो,जिस दिन यह मूर्त रूप में साकार हो जाएगा सभी वृद्धों को छाया के साथ फल भी मिलेगा
ज़रूरत है जागरूक होकर अपना कर्त्तव्य निभाने की|
मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है की मिलकर हर उस कल्पवृक्ष को छाया के साथ-साथ फल भी मिले इसके लिए नुम सब एकजुट होकर प्रयास करें
जब भी लगता है कि हिन्दू धर्म अब मरा तब मरा तभी कोई हिन्दू कहीं से उठ खड़ा होता है. आज एक हिन्दू को पाया है इस ब्लॉग के रूप में.
ReplyDeleteजिलाए रखना यह लौ.