Saturday, August 14, 2010
मेरी आज़ादी
आज़ादी एक ऐसा शब्द,एक ऐसा जज़्बा जो किसी भी इंसान के लिए इतना अहम है की उसकी कल्पना मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है | आज से ठीक ६४ साल पहले जब स्थिति आज के बिलकुल विपरीत थी, जब हम लोग वर्षों की कठोर साधना के फल का इंतज़ार कर रहे थे | सरदार पटेल,सुभाष चंद्र बोस ,खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद , महात्मा गांधी जैसे भारत के वीर सपूतो का बलिदान हमे आज़ादी का अनमोल तोहफा देने की तैयारी में थे| तब के समय और आज के समय में ज़मीन आसमान का अंतर आ चुका है| आज मैं आज़ाद तो हूँ पर क्या मैं सच में आज़ाद हूँ ? मुझे मेरे सारे अधिकार प्राप्त हैं,पर क्या मैं सच में आज़ाद हूँ ? मुझे जीने की आज़ादी है पर क्या मैं आज़ाद हूँ ? मुझे मेरे संविधान ने बहुत से अधिकार दिए हैं, मुझे मेरे विचारों को व्यक्त करने की आजाद्दी तो दी है पर क्या सच में मैं आजाद हूँ ? नहीं मैं आज़ाद नहीं हूँ | ६४ साल पहले मैं अंग्रेजों का गुलाम था और आज, आज अपने द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधियों का गुलाम हूँ | सभी जानते हैं की घर का भेदी लंका दाहे| पर बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है | कोई बोले भी तो क्यों बोले | बस यही बोलते हैं की मेरा क्या जाता है | सोच कर अफ़सोस होता है की मैं आज़ाद हूँ , अफ़सोस इसलिए की मैं आज़ाद तो हूँ पर केवल नाम मात्र के लिए , मैं तो बस एक कठपुतली बन चुका हूँ अपने इस महान देश के महानतम नेताओं का | इससे अच्छा तो पिंजरे में बंद पंछी है जो कम से कम ये जानता तो है की मैं कैद हूँ, गुलाम हूँ | पर मेरा क्या मैं तो एक अनजान से बंधन में खुद को जकडा हुआ पाता हूँ | मैं तो बस ये जानता हूँ की मैं ये तो नहीं बता सकता की अज्ज़दी के पहले लोगों की मानसिक दशा कैसी थी ? पर इतना ज़रूर जानता हूँ की मैं "सच में आज़ाद नहीं हूँ "|
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वास्तव में यह विचार करने का विषय है
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट!
ReplyDeleteआप लोगों का स्नेह देख कर लिखने की अभिलाषा और भी प्रबल हो रही है | आगे और भी ज्वलंत मुद्दों पर लिखूंगा | धन्यवाद |
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