Wednesday, July 28, 2010

कल्पवृक्ष

कहानी है उनके नाम जो अपने बुज़ुर्ग माँ बाप को या तो बोझ समझते हैं, या फिर ओल्ड फैशन कपड़े,जिनकी एक समय के बाद मार्केट डिमांड समाप्त हो जाती है,ये उनकी कहानी है जो पेड़ तो लगा देते हैं, इस आस में की समय आने पर वह फल देगा, और अगर फल न भी मिले तो कम से कम छाया तो ज़रूर मिलेगी,पर अंत में क्या होता है ? पूरी ज़िंदगी जो अपने शारीर को जला देने वाली धूप, जमा देने वाली सर्द हवाओं एवं मज़बूत से मज़बूत इमारतों को भी गिराने में सक्षम पानी एवं तेज़ आँधी का सामना कर अपने बुढ़ापे की कथित लाठी या उस छायादार वृक्ष के कोमल अंकुर की रक्षा करते हैं, वही वृक्ष बनने के बाद अनजान पक्षियों को तो आसरा दे देता है परन्तु उसे जीवन देने वाले माली को ही पहचानने से इनकार कर देता है, तब उस माली पर क्या गुज़रती है, इसकी कल्पना मात्र से ही रोम-रोम सिहर जाता है,नेत्रों से बरबस आंसू छलक आते हैं,उस असहनीय पीड़ा को मैं तो क्या स्वयं भगवान भी अभिव्यक्त नहीं कर सकते,ये पीड़ा तो वही समझ सकता,है,जिनपर ये गुज़रती है|पता नहीं हमारे भारत की युवा पीढ़ी को ये क्या हो गया है? मुझे तो ये कहते हुए अनायास ही विचार आता है की, क्या ये वही भारत है? जहाँ श्रवण कुमार जैसे पुत्र भी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन माँ बाप के चरणों में अर्पण कर दिया था बिना किसी स्वार्थ के, यहाँ तक की उनके लिए अपने प्राणों को हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया था|धन्य था वो सपूत जिसके मुख से मरते समय भी माता पिता की ही व्यग्र चिंता निकल रही थी|इसी भारत में श्री रामचंद्र जी जैसे पुत्र भी थे जिन्होंने अपने पिता के वचन मात्र की मर्यादा रखने के लिए सर्वस्व त्याग कर, सभी सुखो का त्याग करके १४ वर्ष का वनवास ग्र्रहण किया|परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यह एक कहानी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया है,जिसे सुनने में तो बहुत आनंद आता है, पर उसको ग्रहण करने केनाम पर हिम्मत जवाब दे जाती है|मैं कोई सर्वज्ञ या सर्वज्ञाता नहीं हूँ,हाँ पर एक जिम्मेदार भारतीय हूँ, जो अपनी संस्कृति एवं सभ्यता से खिलवाड़ होते नहीं देख सकता
वेदों पुराणों एवं सभी धर्म ग्रंथो में, सभी धर्मो में अगर इश्वर का मूर्त रूप देखा गया है तो वह माता-पिता के रूप में ही देखा गया है|सभी धर्म यही कहते हैं, की साक्षात् भगवान के रूप अगर धरती पर हैं तो वो माता-पिता ही हैं|भगवान को किसी ने नहीं देखा पर सभी उनको पूजते हैं
पर जो सच में साक्षात् भगवान का रूप होते हैं,यानी माता-पिता उनकी पूजा से लोग विमुख होकर हम समझते हैं की हमने भगवान की पूजा कर ली|
                                एक बार जब भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान थे, तो उन्होंने अपने दोनों बेटों गणेश और कार्तिकेय को तीनो लोको का भ्रमण करने के लिए कहा, कार्तिकेय तो फ़ौरन अपने मोर पर विराजमान होकर चले गए, परन्तु गणेश जी अपने माता-पिता के ही तीन चक्कर काट कर बोले की आप दोनों ही तो मेरे तीनो लोक होइससे पता चलता है की माता-पिता ही हमारे लिए सब कुछ हैं| धन्य है वो संतान जो माता-पिता के चरणों में स्वर्ग देखते हैं
लेकिन अधिकांशतः,संताने उन्हें बोझ समझते हैं|समस्या केवल कुछ लोगों की नहीं है,समस्या काफी बड़ी है|उनके जीवन में वृद्ध माता-पिता किसी अवांछनीय खर-पतवार की तरह हैं, जिन्हें वह किसी भी कीमत पर अपने तथाकथित मोडर्न जीवन में जगह नहीं देना चाहते|सच्चाई तो बिलकुल विपरीत है, जो सच में है उसका कोई मोल नहीं है,और जो सच में नहीं है उसके पीछे सभी पागल हैं|माता पिता,तो इश्वर के वो प्रत्यक्ष स्वरुप हैं, जिसमे सारा ब्रह्माण्ड निहित है|दरकार है तो बस उचित नज़र से देखने की क्यों भौतिकतावाद के पीछे पागलों की तरह मारे फिरते हो, जो सत्य है उसी की पूजा करो|
                           जिस माता-पिता ने जीवन दिया, बीज से वृक्ष बनाया उसी को तिरस्कृत करके हम कौन सी बहादुरी कर रहे हैं? अभी भी समय है,जिन्होंने अपने जीवन की परवाह न करते हुए,खुद आधा परत खाकर, आधे नंगे रहकर भी तुम्हारी हर इच्छा को पूरा किया आज उसी से पूछते हो की कि आपने हमारे लिए किया ही क्या हैशर्म करो माता-पिता तो उस कल्पवृक्ष कि तरह हैं, जिन्होंने कभी देने के अलावा कुछ नहीं किया अगर सच में इश्वर के प्रति श्रद्धा है,तो इश्वर क माता-पिता में देखो,जिस दिन यह मूर्त रूप में साकार हो जाएगा सभी वृद्धों को छाया के साथ फल भी मिलेगा
ज़रूरत है जागरूक होकर अपना कर्त्तव्य निभाने की|
                                          मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है की मिलकर हर उस कल्पवृक्ष को छाया के साथ-साथ फल भी मिले इसके लिए नुम सब एकजुट होकर प्रयास करें




Friday, July 23, 2010

पंख

कहते हैं की अगर आपके पास सपने हैं तो उनको पूरा करने की आप हर संभव कोशिश करते हैं पर उनका क्या जो सपने देख तो सकते हैं पर उनको पूरा करने का हक उनको या तो है ही नहीं या फिर अगर पूरी जोर आजमाइश के बावजूद भी उनसे वो हक हथिया लिया जाता हैजी हाँ आप सोच रहे होंगे की मैं किसकी बात कर रहा हूँ ?मैं बात कर रहा हूँ उन बच्चों की जो समय से पहले ही जवानी की दहलीज़ को लाँघ कर अपने बचपन से वंचित हो जाते हैं हर बच्चा चाहता है की वह पढ़े लिखे,स्कूल जाते हुए दूसरे बच्चों को देखकर उसका भी मन करता है की वह स्कूल जाए उसका कोमल मन भी बचपन की मस्ती में सराबोर होने के लिए मचल उठता है, वह भी चाहता है की उसके पास भी वो सारी सुख सुविधाएं हो जो और किसी बच्चे के पास होती हैं हर सुबह वो येही सोच कर उठता है की आज तो कम से कम उसका एक सपना पूरा हो जाये पर ए फॉर एप्पल की जगह उसे ए फॉर आटा और बी फॉर बॉय की जगह बोरी थमा दी जाती है कलम की जगह डंडा और स्कूल बैग की जगह बोरी कंधे पर लादे हुए वो बच्चा स्कूल न जाकर स्कूल के बाहर वाले कचरे के ढेर पर खड़ा होकर अपने भविष्य की तलाश करता रहता है उसी रास्ते से हमारे महानुभाव लोग हम जिन्हें हम लोग ही चुन कर हमारे कल को बनाने का ज़िम्मा सौंप देते है रोज़ गुज़रते हैं , पर ए सी गाडियो में से बाहर झाँकने की फुर्सत उनको कहाँ हैं उनको तो बस अपने ऐशो आराम के अलावा और किसी चीज़ की परवाह नहीं होती उनकी तो बात ही मत कीजिये हममे से भी किसी को भी इतनी फुर्सत नहीं है की उनके बारे में कुछ सोचें शर्म आती है ये सोच कर की हम भारत के विकास की बात करते हैं पर क्या यही सच्चे भारत की तस्वीर है ? नहीं ये बस हमारा भ्रम है सोचने की ज़रूरत है हर उस भारतीय को जो अपने को सच्चा भारतीय कहते हैं क्या हम भारतीय होने का फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं? नहीं, ज़रूरत है सच्चे भारतीय का फ़र्ज़ अदा करने की अब भी समय है की हम अपने भारत के भविष्य को अगर सच में उज्जवल बनाना चाहते हैं तो कम से कम एक बच्चे को शिक्षा का उपहार दे तभी हम सच्चे भारतीय कहलाने के हक़दार हैं किसी ने बिलकुल ठीक कहा है की "घर से मस्ज़िद दूर है अगर , तो कुछ यूँ कर ले , घर से मस्ज़िद दूर है अगर, तो कुछ यूँ कर ले , आज किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए "