Tuesday, December 20, 2011

हौंसला

ज़िंदगी को कुछ यूं देखा करीब से मैने
जो सोचा था उससे काफी दूर दिखी मुझे
कहां तो सपनों में एक आकाश था उनमुक्त
यहां से वहां वहां से यहां उड़ता फिरता था
जीवन की कठोरता से तब नही था वाकिफ
बस यही सोचता था की आज हीं है सब कुछ
कल की चिंता नही थी जब तक मन में
मन था बादल और दिल था मोर
जीवन के हर पहलु से जब होने लगी तकरार
तब जाना की सपने तो सच में हीं
होते हैं कांच की तरह क्षणभंगुर
देखने में तो लगते हैं काफी मोहक पर
टूट कर बिखर जाते हैं एक हीं ठोकर पर
सब कहते हैं की हौंसला रखो तुम दोस्त
पर कोई बताए हौंसला दिखता कैसा है
दिखने की छोड़ो मिलता कहां है, कोई बताए
आज हीं कुछ खरीद कर रख लूंगा अपने पास
कहते हैं की अंदर हीं रहता है खुद के
मानता हूं मैं ये बात मगर, कोई मुझे बताए
कब तक रखूं मैं हौंसला आखिर कब तक।

Friday, December 9, 2011

मेरा क्या कसूर .....

उम्र के 24वें पड़ाव पर पहुंच चुकी किसी भी लड़की को समाज में किस नज़र से देखा जाता है आप सभी लोग समझ सकते हैं। खास कर उनको जो की पढ़ाई करती हैं ये सोच कर की कुछ करुंगी अपने और अपने माता-पिता के लिए। मां-बाप भी कुछ भी करके उसकी हर इच्छा को पूरा करते हैं। आंखो में कुछ सपने औऱ दिल में कुछ कर गुज़रने की तमन्ना लिए जब वही लड़की सब कुछ काफी अच्छे तरीके से करती हूई अपने आप को पूरी तरह से तैयार करके कहीं पर जाती है इस उम्मीद के साथ की शायद उसकी किस्मत औऱ उसकी मेहनत कुछ रंग लाएगी औऱ उसको कहीं अच्छी जगह पर काम मिल जाएगा। जिससे वो अपने मां बाप के अधूरे सपनो को पूरा करेगी। और मां-बाप के सर पर के कर्ज़ के बोझ को उतार कर उनको कृतार्थ करेगी। यही कुछ सोच कर वो सबसे सब कुछ चुपचाप सुनती हुई औऱ सहती हुई बस दिन रात अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती हुई कुछ कर गुज़रने की लालसा के साथ कड़ी मेहनत करती रहती है। मेहनत करे भी क्यों नहीं क्योंकि वो किसी बड़े खानदान से ताल्लुक नही रखती है ना उसके मां-बाप के पास अपार संपत्ती है और ना ही उसकी मां या पिताजी के पास सरकारी नौकरी है। बस उसकी इच्छा और मेहनत को देख कर उसके पिता जी ने बैंक लोन लेकर उसकी पढ़ाई जारी रखी। ये सोच कर की कहीं ना कहीं नौकरी करके वो उनको सारे कर्ज़ो से उद्धार कर देगी औऱ उनकी ढेर सारी अपूर्ण इच्छाओं को पूरा करेगी। पर अफसोस की उनका हर एक सपना धीरे-धीरे टूटकर चकनाचूर होता जा रहा है। कारण का कुछ पता नहीं है। की आखिर क्यों हो रहा है एसा। अब अगर घर की बात होती तो कोई चिंता नही थी की पैसे कैसे वापस करने हैं। बैंक भी कुछ भी सुनने को तैयार नही है। उनको भी बस अपने पैसे चाहिएं। अब अगर उसके घर के किसी भी सदस्य के पास सरकारी नौकरी होती तो ऋण वापस हो जाता, पर समस्या यह है की हम जिस देश मे रहते हैं वहां पर घर बनाना हो तो, या फिर गाड़ी खरीदनी हो तो उसके लिए ऋण का ब्याज काफी सस्ता है पर अगर किसी को पढने के लिए ऋण लेना हो तो उसको काफी ज्यादा ब्याज देना पड़ता है।
वही लड़की हाल हीं मे गई थी देश की एक नामी गिरामी कंपनी में साक्षात्कार के लिए। सब कुछ सही ढंग से हुआ यहां तक की उसके साथ-साथ गए लोगों का दो दौर में साक्षात्कार हुआ पर इसके साथ तीन दौर तक साक्षात्कार हुआ। जब वहां से वापस आई तो कहा गया की आप सारे पेपर भेंजें. उनके कहे अनुसार किया भी गया। फिर शुरु हुआ इंतजार का एक लंबा सिलसिला। काफी इंतजार करने के बाद भी जब कुछ सुगबुगाहट नही हुई तो फिर मानुष मन तो आखिर मानुष मन हीं हैं । इसने फोन किया तो कहा गया की आपका कार्य चल रहा है आपको जल्दी हीं सूचित किया जाएगा। फिर शुरु हुआ इंतजार का सिलसिला। फिर भी जब कुछ नही हुआ तो फिर से फोन किया। इस बार कहा गया की अभी कुछ नही है अगर कुछ होगा तो आपको फोन किया जाएगा। फिर अचानक से पता चलता है की जो सज्जन इनके साथ गए थे वो अपना डेरा-डंडा वहीं उसी शहर में जमा कर रखे हुए थे । बाद में पता चला की उनका चयन हो गया है और इनको नही चुना गया। अब आप ही बताएं की जब किसी को काम नही देना रहता है तो क्यों उसको इस हद तक उम्मीद बंधाई जाती है की अगर उम्मीद पूरी नही हो तो वो इंसान बिल्कुल टूट जाए।
आप ही ये तय करे की आखिर इसमें इसकी क्या गलती है। अगर किसी की रुची किसी क्षेत्र में अपना करियर बनाने की है और वो उस विषय से संबंधित पढ़ाई करता है या करती है और कड़ी मेहनत करने के बाद भी उसको दर-दर की ठोकरें खानी पड़े तो फिर ऐसी पढ़ाई करने से क्या फायदा। यहां पर सबसे बड़ी बात है की अगर आपके पीछे कोई बड़ा नाम है तो ठीक है और अगर आप किसी छोटे शहर से या किसी छोटे संस्थान से काफी अच्छे नंबरों से भी पास हैं तो आपको एक कुत्ता भी नही पूछेगा।
मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं की अगर यही होना है तो फिर क्यों सरकार किसी भी शहर में किसी भी कोर्स को करने की आजादी दे देती है ।